Dhanteras 2025: धनतेरस: सुख, समृद्धि और शुभता का पर्व, दिवाली की शुरुआत का प्रतीक
Dhanteras 2025: धनतेरस: सुख, समृद्धि और शुभता का पर्व, दिवाली की शुरुआत का प्रतीक…
ॐ नमो भगवते धन्वंतराय विष्णुरूपाय नमो नमः
धनतेरस पूजन मुहूर्त – धनतेरस के दिन यानि 18 अक्टूबर को पूजन के लिए शुभ मुहूर्त प्रदोष काल यानी 07 बजकर 16 मिनट से लेकर 08 बजकर 20 मिनट तक है।
UNN: डॉ. सागर दुबे। धनतेरस से पांच दिनों तक चलने वाले दीपोत्सव पर्व की शुरुआत होती है. धनतेरस हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. धनतेरस पर हर तरह की खरीदारी, निवेश और नए कामों की शुरुआत के लिए सबसे अच्छा दिन माना जाता है.नतेरस पर किए गए उपाय व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, सुख-संपत्ति और सपन्नता की प्राप्ति होती है. ऐसे में धनतेरस पर कुछ उपाय बहुत ही कारगर माने जाते हैं.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद के जनक तथा भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है। वे अमृत कलश लेकर सागर मंथन से प्रकट हुए थे, इसलिए यह दिन स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त, इस दिन मां लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा का विशेष विधान है। मां लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है, वहीं कुबेर देव धन के स्वामी हैं। ऐसा विश्वास है कि इस दिन यदि श्रद्धा से इन दोनों देवताओं की पूजा की जाए, तो घर में लक्ष्मी की स्थायी कृपा बनी रहती है। धनतेरस से पहले लोग अपने घरों की सफाई करते हैं और उन्हें सुंदर सजावट से सँवारते हैं। शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है और दीप जलाए जाते हैं। इस दिन नए बर्तन, सोना, चाँदी या तांबे के सामान खरीदने की परंपरा है। पूजन के समय भगवान धन्वंतरि, मां लक्ष्मी और कुबेर देव की प्रतिमाओं या चित्रों की स्थापना की जाती है। उन्हें पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य और जल अर्पित किया जाता है। पूजा के बाद परिवारजन मिलकर आरती करते हैं और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं। धनतेरस की रात को यमदीपदान करने की भी परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन घर के बाहर दक्षिण दिशा में एक दीप जलाकर यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है।
धनतेरस से जुड़ी प्रसिद्ध कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार राजा हिम के पुत्र की कुंडली में यह लिखा था कि विवाह के चौथे दिन उसकी मृत्यु सर्पदंश से होगी। जब विवाह हुआ, तो उसकी पत्नी ने चौथे दिन रातभर अपने पति को सोने नहीं दिया और घर में चारों ओर दीप जलाकर उसे रोशनी से भर दिया। उसने बहुत सारी कहानियाँ और गीत सुनाकर अपने पति को जगाए रखा। जब यमराज सर्प के रूप में वहाँ पहुँचे, तो दीपों की उजास और पत्नी के प्रेमपूर्ण समर्पण से वे प्रभावित हो गए। उन्होंने सर्पदंश न करके वहाँ से लौटने का निर्णय लिया। उसी घटना की स्मृति में हर वर्ष यह दिन यमदीपदान और धनतेरस के रूप में मनाया जाता है।
धनतेरस का आधुनिक महत्व-
आज के समय में धनतेरस केवल सोना-चाँदी या सामान खरीदने का त्योहार नहीं रह गया है, बल्कि यह स्वास्थ्य, स्वच्छता और सकारात्मक जीवन दृष्टिकोण का प्रतीक बन गया है। कई लोग इस दिन स्वास्थ्य बीमा, चिकित्सा से जुड़ी वस्तुएँ, या आयुर्वेदिक औषधियाँ खरीदना शुभ मानते हैं। धनतेरस हमें यह भी सिखाता है कि सच्चा धन केवल भौतिक संपत्ति नहीं, बल्कि अच्छा स्वास्थ्य, प्रेम, और आत्मिक संतोष भी है।
