Madhya Pradesh Indore : नज़दीकी सिनेमाघरों में 8 मार्च 2024 को फिल्म महायोगी हाईवे 1
नज़दीकी सिनेमाघरों में 8 मार्च 2024 को फिल्म महायोगी हाईवे 1
इन्दौर – 8 मार्च 2024 को, यानि महाशिवरात्रि के दिन इस साल कुछ ऐसा होने जा रहा है जो किसी अलौकिक घटना से कम नहीं है। इस महाशिवरात्रि के दिन 8 मार्च 2024 को स्वयं ईश्वर के प्रेम का सन्देश। आपके नज़दीकी सिनेमाघरों में आ रहे हैं परमेश्वर के इस सन्देश को आप तक पहुंचाने वाले है। – फिल्म महायोगी हाईवे 1, एक छवि है मानव एकता की । प्रिंस मूवीज मुंबई के ऑल इंडिया डिस्ट्रीब्यूटर राकेश सभरवाल का कहना है की फिल्म महायोगी हाईवे 1महायोगी के माध्यम से हम सब को आह्वान किया है की हम धार्मिक, सामाजिक और आंतरिक भेदभाव भूल कर आपसी प्रेम, शांति और वैश्विक एकता के पथ पर चल पड़ें। प्रेस कॉन्फ्रेंस इंदौर में प्रिंस मूवीज मुंबई के ऑल इंडिया डिस्ट्रीब्यूटर राकेश सभरवाल और विजय वर्मा मौजूद रहे। वह एकता जो आज मानवता कहीं खोती चली जा रही है। ज़रा ठहरकर सोचिये, जिस इंसानी प्रजाति को ईश्वर ने अपना सारा प्रेम उड़ेलकर बनाया, जिन में वह अपनी ही प्रेम की प्रतिच्छवि ढूंढते हैं, क्या उन्हें धर्म के नाम पर, देश के नाम पर, राजनीती के नाम पर इस क़दर आपस में लड़ते-भिड़ते देखकर, ईश्वर को आनंद मिलता होगा? नहीं मित्रों, परमेश्वर की आँखों में आज आंसूं है। राम हों या अल्लाह, ईसामसि हों या वाहेगुरु, बुद्ध हो या महावीर, है तो सभी प्रेम ही के रूप। हर आत्मा परमात्मा का ही अंश है। सब के अंदर वह एक ही है। निर्माता राजन लूथरा अपनी फिल्म महायोगी हाईवे १ के माध्यम से ईश्वर की यही वार्ता लोगों तक पहुंचा रहे हैं की उनकी प्रेम और आपसी सद्भाव में ही ईश्वर बसते हैं, और कहीं नहीं। राजन लूथरा का मानना है कि महायोगी हर जगह, हर आत्मा के भीतर निवास करते हैं और सच्ची एकता की प्राप्ति के लिए चेतना से शुद्ध चेतना तक की यात्रा का मार्गदर्शन करते हैं। आध्यात्मिक प्रतिमान 2024 में घटित होने लगेगा।
जिस दुनिया में लाखों लोग आज भी बेघर है, कड़ोड़ों बच्चे आज भी सड़कों पर भूखे सोते हैं, उसी दुनिया में हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी धर्म एक दुसरे को अपना दुश्मन समझ रहे हैं। जातिवाद, रंगभेद, नस्लभेद चरम सीमा पर है। इज़राईल और फिलिस्तीन, रूस और यूक्रेन, भारत और पकिस्तान, पडोसी – पडोसी युद्ध पर उतारू हैं। हर जगह अशांति, बम्ब, मिसाइल और मौत का तांडव है। जिस धरती ने हमें इतने प्यार से माँ की तरह सींचा है, आज उसके अंदर से फूट रही है क्रोध की ज्वालामुखी – हर तरफ़ मची है तबाही, कहीं सुनामी, कहीं महामारी, तो कहीं भूकंप। प्रकृति से छेड़छाड़ का आलम यह है, की कहीं पेड़ काटे जा रहे हैं तो कहीं पक्षियों और जानवरों को मारा जा रहा है, कहीं प्रदुषण का काला धुआं, तो कहीं वायरस का फैलाव।