मुस्लिम महिलाओं के लिए तालिबान का नया फरमान
मुस्लिम महिलाओं के लिए तालिबान का नया फरमान
‘औरतों की आवाज आवारा, इबादत के समय एक-दूसरे की आवाज न सुनें’ ……
महिलाओं के तमाम हक छीने
नई दिल्ली: मगर प्रश्न यह उठता है कि आखिर महिलाएं ही क्यों एक-दूसरे की आवाज नहीं सुन सकती हैं? महिलाएं जब घर से बाहर निकलें तो उन्हें अपना शरीर पूरी तरह से ढक कर निकलना चाहिए। तालिबान सरकार ने महिलाओं के तमाम हक वैसे ही छीन लिए हैं। अगर उनका घर से बाहर निकलना जरूरी भी है, तो उन्हें आदमियों से अपना चेहरा और आवाज छिपानी चाहिए। टेलीग्राफ के अनुसार अफगानी महिलाओं को यह भी हुक्म मिला है कि वे अपने घरों मे तेज न बोलें, जिससे उनकी आवाज घर से बाहर आए और आदमियों के कानों में पड़े। रिपोर्ट में काबुल से एक पूर्व सिविल सर्वेन्ट ने कहा कि वह दुखी है। दुनिया तकनीक में दिनों दिन आगे बढ़ रही है और हम यहां पर एक-दूसरे की आवाज नहीं सुन सकते। हेरात प्रांत की एक महिला ने कहा कि तालिबान नहीं चाहते कि हमारा वजूद भी रहे। दुनिया ने अफगानिस्तान को छोड़ दिया है। उन्होंने हमें तालिबान के रहमोकरम पर छोड़ दिया है और हमें जो भी अब कुछ होगा, तो वह “पश्चिमी सरकारी नीतियों” के कारण होगा।
तालिबान के मंत्री मोहम्मद खालिद हनफी ने एक नया फरमान जारी किया है। उन्होंने कहा कि औरतों की आवाज को आवारा माना जाता है, जिसका अर्थ होता है कि उसे छिपकर रहना चाहिए और सार्वजनिक स्थानों पर यह किसी के भी कानों में नहीं पड़नी चाहिए, इसलिए अब उन्हें कुरान पढ़ते समय आवाज नहीं निकालनी चाहिए।
टेलीग्राफ के अनुसार मोहम्मद खालिद हनफी ने पिछले सप्ताह एक ऑडियो जारी करके मुस्लिम महिलाओं के लिए यह अजीबोगरीब फरमान जारी किया। हालांकि तालिबान के इस फतवे की पूरी जानकारी अभी नहीं आई है, मगर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसका मतलब यह तक हो सकता है कि महिलाएं आपस में ही किसी से बात न करें। खालिद हनफी ने संदेश में कहा, ‘यहां तक कि जब एक वयस्क महिला इबादत कर रही हो/नमाज पढ़ रही हो और दूसरी महिला उसके पास से गुजर रही हो, तो उसे इतनी ऊंची आवाज में प्रार्थना नहीं करनी चाहिए कि वे सुन सकें।’
हनफी के अनुसार महिलाएं गा कैसे सकती हैं, यदि उन्हें नमाज पढ़ते समय एक-दूसरे की आवाज सुनने की इजाजत ही नहीं हैं। नए कानून धीरे-धीरे लागू किये जाएंगे और ऊपरवाला उन्हें उनके हर कदम में सफल कर रहा है। तालिबान सरकार का यह फरमान महिलाओं के लिए एक बहुत ही भयानक कैद की ओर संकेत कर रहा है। महिलाओं की आवाज तालिबान सार्वजनिक स्थानों पर वैसे ही प्रतिबंधित कर चुका है। महिलाएं सार्वजनिक स्थानों पर पुरुषों से बात नहीं कर सकती हैं, और अब प्रतीत हो रहा है कि इस आदेश के माध्यम से महिलाओं की परस्पर बातचीत को भी तालिबान बंद कर रहा है। हालांकि यह हुक्म अभी नमाज, इबादत आदि के लिए ही है, मगर लोगों का डर है कि इसका दायरा बढ़ जाएगा।
ऐसे में उन महिलाओं का क्या होगा, जो अपने घर मे इकलौती कमाने वाली हैं। उन्हें किसी भी तरह की चिकित्सीय मदद चाहिए। यही चिंता महिलाओं के लिए कार्य करने वाली कार्यकर्ताओं कीहै। टेलीग्राफ से बात करते हुए काबुल की एक महिला ने कहा कि जो भी हनाफी ने कहा वह उनके लिए एक मानसिक यातना है। अफगानिस्तान में रहना हम महिलाओं के लिए बेहद दर्दनाक है। अफगानिस्तान को भुला दिया गया है, और इसीलिए वे हमें दबा रहे हैं, वे हमें रोजाना प्रताड़ित कर रहे हैं।