Lok Sabha Speaker: ओम बिरला चुने गए लोकसभा के अध्यक्ष
नई दिल्ली । लोकसभा स्पीकर के चुनाव कराने को लेकर और उसमें मिली हार से स्पष्ट है कि राहुल गांधी अपने पहले ही टेस्ट में फेल हो गए हैं। यह कांग्रेस का सिर्फ अहंकार ही था कि उसने इस तरह की मांग की थी। सदन में अभी परंपरा यही रही है की जिसकी सरकार होती है लोकसभा स्पीकर भी उसी का होता है, लेकिन कांग्रेस उसके साथी दलों के दम पर फिर भी लोकसभा स्पीकर का चुनाव कराने की खोखली भभकी दी थी, हालांकि सदन में केवल ‘वॉयस वोटिंग’ हुई और कांग्रेस को अपनी स्थिति पता चल गई। कांग्रेस लोकसभा स्पीकर के लिए चुनाव कराने का दावा कर रही थी। कांग्रेस को लग रहा था कि वह आसानी से 272 का आंकड़ा सदन में छू लेगी, जो पार्टी खुद चुनाव में अपने बूते दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई उसका यह दंभ ही हैं कि वह ऐसा सोच रही थी। लोकसभा स्पीकर के लिए केवल ‘ वॉयस वोटिंग’ हुई, यदि लोकसभा स्पीकर के लिए वास्तव में वोटिंग होती तो कांग्रेस को 200 से भी नीचे वोट मिलते।
कांग्रेस ने लोकसभा स्पीकर के चुनाव के लिए केरल के सांसद कोडिकुन्नील सुरेश का नाम आगे किया था। दलित होने के नाम पर के. सुरेश की वकालत कांग्रेस कर रही थी, लेकिन यदि कांग्रेस दलितों की इतनी ही हितैषी तो उन्होंने नेता प्रतिपक्ष के लिए के. सुरेश या अन्य किसी दलित नेता का नाम क्यों नहीं आगे किया? क्यों राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया? क्या उनसे वरिष्ठ कोई नेता वहां नहीं था? ऐसा इसलिए क्योंकि नेता प्रतिपक्ष कैबिनेट रैंक का होता है। सरकार के मंत्री को मिलने वाली सारी सुविधाएं भी उसको मिलती हैं। कई महत्वपूर्ण समितियों में नेता प्रतिपक्ष शामिल होता है। इसलिए राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है। जब मलाई खाने की और सत्ता की बात होती है तो कांग्रेस सबसे आगे होती है, लेकिन जब सहानुभूति बटोरनी हो तब वह जाति का, दलित होने का कार्ड खेलती है।