आध्यात्मिकता, संस्कृति और कलात्मक अभिव्यक्ति का संगम – भारतकूल अध्याय–2 का भव्य समापन
आध्यात्मिकता, संस्कृति और कलात्मक अभिव्यक्ति का संगम – भारतकूल अध्याय–2 का भव्य समापन
माननीय मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल, उपमुख्यमंत्री श्री हर्ष संघवी, पूज्य ब्रह्मविहारी स्वामीजी, पूज्य डॉ. ज्ञानवत्सल स्वामीजी, श्री परिमल नथवाणी, विधानसभा अध्यक्ष श्री शंकरभाई चौधरी, पद्मश्री शाहबुद्दीन राठौड़ एवं श्री द्वारकेशलालजी महाराजश्री की गरिमामयी उपस्थिति
अहमदाबाद : भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और सनातन धर्म के शाश्वत मूल्यों के उत्सव के रूप में आयोजित भारतकूल अध्याय–2 का भव्य आयोजन 12 से 14 दिसंबर 2025 तक गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद में किया गया। तीन दिवसीय इस महोत्सव ने कला, साहित्य, संगीत, आध्यात्मिकता और विचारप्रधान संवाद के माध्यम से भारतीय संस्कृति की गहराई और जीवंतता का अनुभव कराया।
महोत्सव का उद्घाटन माननीय मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल के कर-कमलों द्वारा किया गया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारतकूल अध्याय–2 केवल एक सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि भारत की आत्मा को स्पर्श करने वाली एक भावनात्मक यात्रा है। विकास के साथ संस्कृति का संतुलन ही भारत की सच्ची पहचान है और भारतकूल इस संतुलन को सशक्त रूप से प्रस्तुत करता है। उन्होंने युवाओं को अपनी जड़ों, परंपराओं और आध्यात्मिक मूल्यों से जोड़ने के इस प्रयास की विशेष सराहना की।
उपमुख्यमंत्री श्री हर्ष संघवी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत की वास्तविक ‘कूल’ पहचान उसके मूल्यों, संस्कृति, सहिष्णुता और सामूहिक शक्ति में निहित है। उन्होंने यह भी कहा कि युवाओं को उनकी मूल पहचान, परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ना समाज और राष्ट्र के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने खेल, युवा शक्ति और आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर विस्तृत चर्चा करते हुए बताया कि अहमदाबाद का 2030 कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए चयन होना गुजरात और पूरे भारत के लिए गर्व की बात है। यह उपलब्धि शहर की विश्वस्तरीय सुविधाओं, सुव्यवस्थित तैयारी और दूरदर्शी नेतृत्व का परिणाम है। श्री संघवी ने युवाओं को संस्कृति और अनुशासन के साथ जीवन जीने की प्रेरणा दी और देश की आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक प्रगति में उनकी भूमिका का महत्व स्पष्ट किया।
आध्यात्मिक दिशा प्रदान करते हुए पूज्य ब्रह्मविहारी स्वामीजी ने कहा कि भारतीय संस्कृति जीवन जीने की कला सिखाती है, जहाँ भाव, संगीत और विचार एक होकर मानवता का निर्माण करते हैं।
पूज्य डॉ. ज्ञानवत्सल स्वामीजी ने ‘द आर्ट ऑफ बिकमिंग अ जीनीयस’ पर प्रेरक उद्बोधन दिया। उन्होंने बताया कि जीनीयस जन्म से नहीं, बल्कि प्रयास, अनुशासन और सच्चे मूल्यों से बनता है। उन्होंने कोयला, ग्रेफाइट और हीरे का उदाहरण देकर समझाया कि एक ही परिवार का होने के बावजूद संरचना और परिष्कार के अनुसार मूल्य बदलता है। जीवन में मुख्य तत्त्व हैं—श्रेष्टता की प्रवृत्ति, मानवीय संबंध और धर्म–आध्यात्मिकता। स्वामीजी ने ईश्वर में विश्वास, मन की शांति और जीवन में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता बताई। इन सिद्धांतों को अपनाकर सामान्य व्यक्ति भी असाधारण सफलता प्राप्त कर सकता है।
महोत्सव के दूसरे दिन विधानसभा अध्यक्ष श्री शंकरभाई चौधरी ने ‘बनास की सुवास’ विषय के अंतर्गत बनासकांठा के सर्वांगीण विकास की प्रेरक यात्रा प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि बनास डेयरी का टर्नओवर 4,000 करोड़ से बढ़कर 24,000 करोड़ रुपये तक पहुँचना सहकारिता, पारदर्शिता और जनभागीदारी का उत्कृष्ट उदाहरण है। गौ-आधारित अर्थव्यवस्था, पर्यावरण संरक्षण, महिला सशक्तिकरण और शिक्षा-रोजगार आधारित पहलों ने बनासकांठा को विकास का रोल मॉडल बनाया है।
सांस्कृतिक सत्रों में पद्मश्री शाहबुद्दीन राठौड़ ने अपने संस्कारयुक्त हास्य से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। संगीत संध्याओं में लोकप्रिय गायकों की प्रस्तुतियों ने पूरे महोत्सव को भावनात्मक ऊर्जा से भर दिया। काव्य सत्र, चित्र एवं शिल्प प्रदर्शन तथा ‘राग’ के अंतर्गत आयोजित व्याख्यानों को भी दर्शकों से भरपूर सराहना मिली।
साथ ही, श्री भाग्येश झा ने भारतकूल अध्याय–2 के अवसर पर पार्वती और भगवान शिव को वंदन करके भारतीय चिंतन में आत्मतत्त्व पर गहन विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि एकांत और आत्मचिंतन प्राचीन भारतीय संस्कृति का अविभाज्य अंग हैं। AI के युग में, भले ही मशीनें मानव से आगे हों, फिर भी मानव को स्वयं को चेतना का प्रतिनिधि समझना चाहिए—यही आत्मबोध, आत्मतत्त्व का सच्चा स्वरूप है।
भारतकूल अध्याय–2 के समापन अवसर पर श्री द्वारकेशलालजी महाराज विशेष रूप से उपस्थित थे और उन्होंने “मानव जीवन: उत्सव या आपत्ति” विषय पर प्रेरक प्रवचन दिया। उन्होंने बताया कि धर्म और संस्कृति के मूल तत्वों को समझे बिना हम उन्हें सही ढंग से आगे नहीं ले जा सकते, और आज की युवा पीढ़ी को चार पुरुषार्थों—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—की सटीक समझ होना अत्यंत आवश्यक है। जीवन में स्वतंत्रता के साथ-साथ अपने मूल इष्ट से जुड़ाव ही आंतरिक संतुलन बनाए रखता है, इस पर उन्होंने विशेष जोर दिया। उन्होंने आगे कहा कि केवल रूढ़िवाद या आडंबर में बंधे रहकर नहीं, बल्कि ईश्वर को व्यक्तिगत आराधना का केंद्र मानकर ही आत्मा और परमात्मा का सच्चा मिलन संभव है। धर्म और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हैं और संस्कारों के संवर्धन से ही सनातन विचारधारा जीवित रहती है।
समापन अवसर पर गुजरात मीडिया क्लब के अध्यक्ष श्री निर्णय कपूर ने महोत्सव के दौरान उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों, वक्ताओं, कलाकारों, प्रायोजकों तथा उपस्थित दर्शकों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त किया।
इस महोत्सव का आयोजन गुजरात मीडिया क्लब द्वारा किया गया था। गुजरात टूरिज्म मुख्य प्रायोजक रहा, जबकि अदाणी ग्रुप, GMDC, GIDC, RARU और RHETAN अन्य प्रायोजक थे। इसके अतिरिक्त गुजरात साहित्य अकादमी और स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ गुजरात सह प्रयोजक रहे।
भारतकूल अध्याय–2 भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिक विचार और कलात्मक अभिव्यक्ति का एक स्मरणीय और प्रेरणादायक महोत्सव सिद्ध हुआ।
