पुस्तक समीक्षा – संस्कृत पढ़ने और बोलने में उपयोगी पुस्तक संस्कृतसंभाषणमार्ग दर्शिका

पुस्तक समीक्षा – संस्कृत पढ़ने और बोलने में उपयोगी पुस्तक संस्कृतसंभाषणमार्ग दर्शिका

समीक्षक – प्रवीण जोशी  

UNN: कुछ लोगों का मानना है कि संस्कृत पंडितों और विद्वानों की भाषा है और क्लीष्ट होने की वजह से यह सामान्यजन की भाषा नहीं है। जबकि यह सच नहीं हैं। संस्कृत बड़ी सरल, सरस और मधुर भाषा है और इसे आसानी से सीखा जा सकता है। संस्कृत बड़ी प्राचीन भाषा है और यह समस्त भाषाओं की जननी है। संस्कृत पढ़ने से उच्चारण शुद्धि होती है। इसी बात को रेखांकित करती पुस्तक संस्कृतसंभाषणदर्शिका है। जिसे लिखा है युवा लेखक लोकेश जोशी शास्त्री ने। लोकेश जोशी का देवभाषा संस्कृत के प्रति गहरा अनुराग है। उन्होंने विभिन्न स्थानों पर संस्कृत संभाषण शिविर आयोजित किये और बड़ी संख्या में उन्होंने बच्चों को संस्कृत भाषा के प्रति अनुराग पैदा कराया। लेखक की संस्कृत के प्रति बचपन से ही रुचि रही और उन्होंने संस्कृत में शास्त्री की उपाधि के साथ ही ग्रंथपाल की उपाधि भी प्राप्त की। वे कर्मकांड के साथ ज्योतिष का कार्य भी कर रहे है। इसी प्रतिबद्धता की वजह से वे एक अच्छी पुस्तक की रचना कर सके है।
पुस्तक में लेखक लोकेश जोशी शास्त्री कहते है संस्कृत हमारे आत्म सम्मान की भाषा है। जिस समय विश्व के अन्य देशों ने सभ्यता का कहकरा भी ठीक ढंग से नहीं पढ़ा था उस समय भारत ने अपने दिव्य ज्ञान का प्रसार विश्व के सुदूर कोनो तक किया था। वर्तमान युग में
वैज्ञानिको ने भी यह प्रमाणिक किया कि संपूर्ण विश्व में समरसता की क्षमता की कोई भाषा है तो वह संस्कृत भाषा में है। इस मान से संस्कृत का प्रचार और प्रसार अति आवश्यक प्रतीत होता है।
लेखक शास्त्री आगे कहते है संस्कृत भाषा में बात करने से संस्कृत भाषा का अभ्यास सरल और शीघ्र हो जाता है। जो भाषा दैनिक व्यवहार में आती है, वह बढ़ती है और उसका विकास होता है। संस्कृत भाषा के विकास के लिए संस्कृत में व्यवहार अनिवार्य है। लिखे हुए को पढ़ने की अपेक्षा बोली हुई भाषा का श्रवण करने से उसका सरलता से बोध होता है। इसलिए संभाषण में संस्कृत सरल है। जनमानस में इस भाषा का निर्माण होगा। संभाषण में इसका चैतन्य होगा। लेखक आगे कहते है जब हिंदी, उर्दू,अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच इत्यादि भाषाएँ उन्हीं माध्यम में पढ़ाई जाती है तो संस्कृत भी संस्कृत के माध्यम से पढ़ाई जानी चाहिए तभी संस्कृत शिक्षण सरल होगा। संस्कृत शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन लाने के लिए संस्कृत संभाषण ही माध्यम हो सकता है।


पुस्तक में संस्कृत विद्वानों के शुभकामना भरे संदेश है जो पठनीय होने के साथ प्रेरक भी है।
महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविधालय के कुलगुरु प्रो. विजय कुमार सी. जी. ने लिखा यह पुस्तक संस्कृत के प्रचार प्रसार में उपयोगी साबित होगी। आर्य गुरुकुल महाविधालय सिरसागंज के आचार्य अरुण कुमार दिवेदी ने लिखा कि लेखक ने सरल शब्दों में पुस्तक संस्कृत संभाषणमार्गदर्शिका लिखकर बड़ा उपकार किया है। अब इसका अच्छा प्रचार प्रसार होना चाहिए। इसके अलावा सांसद शंकर लालवानी, कविता पाटीदार और पूर्व मंत्री उषा ठाकुर के शुभकामना संदेश है। 130 पेज की पुस्तक की शुरुआत वीणापाणी देवी सरस्वती की वन्दना और ध्येय मंत्र से होती है। पुस्तक में कुल जमा 15 अध्याय है जिसमें संस्कृत भाषा के छोटे – छोटे शब्द से लेकर बड़े – बड़े वाक्य है ताकि जिसे बिल्कुल भी संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं है वह भी आसानी से संस्कृत भाषा में संभाषण कर सके या देव भाषा को सीख और समझ सके। विभक्ति क्या होती, धातु क्या होती, लट्, अलंकार क्या होते है उनका कैसे प्रयोग किया जाता है उसकी सुंदर बानगी है इस पुस्तक में। एकवचन, द्विवचन बहुवचन का कैसे प्रयोग होता है उसे भी ठीक प्रकार से समझाया गया है। संस्कृत में गिनती कैसे पढ़ी और लिखी जाती है, इसका भी सुंदर विवेचन है। इसके अलावा नित्य उपयोगी वस्तुओ के नाम, फलो के नाम, सब्जियों के नाम, खाधय वस्तुओ के नाम, पशु पक्षियो के नाम, बंधु वाचको के नाम संस्कृत भाषा में है। कुल मिलाकर यह पूरी पुस्तक संस्कृत भाषा में वार्तालाप करने मे बड़ी उपयोगी है। बड़े और मोटे अक्षरों में पुस्तक का प्रकाशन किया गया है ताकि उम्रदराज पाठक भी पुस्तक को आसानी से पढ़ सके। पुस्तक में व्याकरण सम्मत गलतिया नहीं के बराबर है। चिकने और श्वेत पृष्ठों पर श्याम रंग में पुस्तक का सुंदर मुद्रण किया। आवरण बहुरंगी और मन भावन है। लेखकीय परिश्रम साफ झलकता है। पुस्तक का प्रकाशन धर्मेंद्र शुक्ला और डॉ. ममता शुक्ला ने किया है। मूल्य है 200 रुपये।

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