Apollo Hospital Indore : अब गायब होने वाले स्टेंट भी लगवा सकते हैं दिल के मरीज
वैस्क्यूलर स्केफोल्ड्स, एक टेक्नोलॉजी का एडवांसमेंट है, जिसमें एक घुलने वाला तत्व होता है जिसे बायोडिग्रेडेबल पॉलीमर के रूप में जाना जाता है – डॉ. रोशन राव
मध्य भारत की पहली स्वदेशी बायोरिसोर्बेबल वैस्क्यूलर स्केफोल्ड्स द्वारा एंजिओप्लास्टी अपोलो हॉस्पिटल इंदौर में संपन्न हुई
डॉ. सरिता राव भारत की पहली महिला कार्डियोलॉजिस्ट, जिन्होंने इस नवीनतम तकनीक को समाविष्ट किया तथा यह मध्य भारत का पहला प्रोसीजर है ।
इंदौर : परक्यूटेनियस कोरोनरी इंटरवेंशन (पीसीआई), सामान्य तौर पर मेटेलिक स्टेंट्स लगाए जाते और यह मेटेलिक स्टेंट्स हमेशा के लिए शरीर में रह जाता है। इस स्थिति में, एक चिकित्सा संबंधी अमूल्य विकल्प बायोरिसोर्बेबल वैस्क्यूलर स्केफोल्ड्स के रूप में हमारे सामने आई है। यह एक स्टेंट के समान दिखती है, जो धीरे-धीरे शरीर में घुल जाती है। ऐसे में खून को पतला करने वाली दवाई का इस्तेमाल भी कम समय के लिए किया जाता है । इस मौके पर बात करते हुए डॉ. रोशन राव, सीनियर कंसल्टेंट इंटरवेंशन कार्डियोलॉजिस्ट एंड हेड डिपार्टमेंट ऑफ कार्डियोलॉजी, अपोलो हॉस्पिटल इंदौर ने बताया की वैस्क्यूलर स्केफोल्ड्स, एक टेक्नोलॉजी का एडवांसमेंट है, जिसमें एक घुलने वाला तत्व होता है जिसे बायोडिग्रेडेबल पॉलीमर के रूप में जाना जाता है।
इस डिवाइस का स्ट्रट्स (सहयोगी प्लेटफार्म) केवल100 माइक्रोन्स मोटा होता है, जबकि पहले जो स्टेंट था, वह 150 माइक्रोन्स के बराबर होता था, जो समस्या का कारण बनता था। यह एक खुले कोशिकातंत्र की मजबूती को बनाए रखने के लिए उपयोग में आने वाले स्टेंट को ताकत मुहैया करवाता था। इसका अपना एक डिलीवरी मैकेनिज्म होता है, जो बलून केथेटर पर आधारित होता है। इसे तीन रेडियोमार्कर्स के जरिए आसानी से स्केफोल्ड को सही स्थिति में स्थापित कर सकते है।
इस मौके पर बात करते हुए डॉ. सरिता राव, सीनियर कंसल्टेंट इंटरवेंशन कार्डियोलॉजिस्ट, अपोलो हॉस्पिटल इंदौर ने बताया कि यह भारत के इनोवेशन और बेहतर शोध की क्षमता का सच्चा प्रमाण है। इसे भारत के अभियान मेक इन इंडिया के तहत विकसित किया गया है। स्केफोल्ड का जो डिजाइन नए इनोवेशन के साथ हमारे सामने आया है, वह पहले से उपलब्ध बायो रिसोर्बेबल स्टेंट्स की कुछ सीमित क्षमताओं की ओर भी हमारा ध्यान आकर्षित करता है। नए स्केफोल्ड का सक्सेस रेट ज्यादा है । उन्होंने यह भी बताया कि इसकी कीमत भी फिलहाल उपलब्ध डिसॉल्वेबल स्टेंट्स के मुकाबले कम होती है, जिससे बड़ी संख्या में मरीजों को फायदा पहुंचता है। फिलहाल यह थेरेपी केवल अपोलो हॉस्पिटल की कुछ ही यूनिट में पायलट के रूप में उपलब्ध है, जल्द ही यह देशभर में उपलब्ध होगी। 45 वर्षीय मरीज विजय नगर स्थित अपोलो हॉस्पिटल में 2 दिन रहने के बाद ठीक होकर अपने घर लौटे। डॉ. अशोक बाजपेई, डायरेक्टर एंड सीनियर कंसल्टेंट चेस्ट मेडिसिन, अपोलो हॉस्पिटल, इंदौर ने कहा, ‘राज्य के हेल्थ केयर क्षेत्र में अग्रणी होने के नाते हम खुश है कि हमारी कार्डियोलॉजिस्ट की टीम के नेतृत्व में हमने यह इनोवेटिव स्टेप लिया है, और हमें विश्वास है कि आगे भी कार्डियो केयर के ट्रांसफार्म से जुड़े एडवांसमेंट प्रयासों को मदद देते रहेंगे। हम लगातार अपनी सेवाओं को बढ़ाते रहेंगे और जीवन बचाने के लिए इनोवेशन का सहारा लेने में अग्रणी भूमिका निभाएंगे ताकि हमारे मरीजों के जीवन और स्वास्थ्य को बेहतर बना सके । अपोलो हॉस्पिटल इंदौर के सीनियर डॉक्टरों की टीम ने इस प्रक्रिया को संपन्न किया – डॉ. के.रोशन राव, डॉ. सरिता राव, डॉ. क्षितीज दुबे, डॉ. विकास गुप्ता और डॉ. विवेक चंद्रावत के साथ-साथ सीनियर डॉक्टर भी इस टीम का हिस्सा थे।