दिल्ली सेवा बिल संसद से पास, बिल के पक्ष में 131 और विपक्ष में 102 वोट पड़े।

दिल्ली सेवा बिल संसद से पास, बिल के पक्ष में 131 और विपक्ष में 102 वोट पड़े।

नई दिल्लीः दिल्ली सेवा बिल सोमवार (7 अगस्त) को राज्यसभा में पास हो गया। सदन में आप, कांग्रेस के अलावा विपक्षी गठबंधन इंडिया के सभी घटक दलों ने बिल का जोरदार विरोध किया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में ये बिल पेश किया। जिसका बीजू जनता दल (BJD) और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) ने भी समर्थन किया। बिल के पक्ष में 131 और विपक्ष में 102 वोट पड़े।
दरअसल, दिल्ली में अधिकारों की जंग को लेकर लंबे समय से केंद्र और केजरीवाल सरकार में ठनी है। दिल्ली में विधानसभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD) अधिनियम, 1991 लागू है। 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था। संशोधन के तहत दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे। इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार दिए गए थे। इसके मुताबिक, चुनी हुई सरकार के लिए किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेनी अनिवार्य किया गया था।
GNCTD अधिनियम में किए गए संशोधन में कहा गया था, ‘राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा।’ इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को आपत्ति थी। इसी को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि राजधानी में भूमि और पुलिस जैसे कुछ मामलों को छोड़कर बाकी सभी मामलों में दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सर्वोच्चता होनी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार के पक्ष में सुनाया फैसला
केजरीवाल की याचिका पर मई में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने माना दिल्ली (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ) में विधायी शक्तियों के बाहर के क्षेत्रों को छोड़कर सेवाओं और प्रशासन से जुड़े सभी अधिकार चुनी हुई सरकार के पास होंगे। हालांकि, पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास ही रहेगा। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ”अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होगा। उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी।’
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र लाया अध्यादेश
केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को बदलने के लिए 19 मई को जो अध्यादेश लाया गया था। इसमें राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण (एनसीसीएसए) बनाने को कहा गया था। इसमें कहा गया था कि ग्रुप-ए के अफसरों के ट्रांसफर और उनपर अनुशासनिक कार्रवाही का जिम्मा इसी प्राधिकरण को दिया गया। अब इस अध्यादेश को कानूनी रूप देने के लिए सदन में विधेयक पेश किया गया है। यह लोकसभा से पास हो गया है। अब राज्यसभा में बिल पर वोटिंग होगी।
विधेयक के कानून बनने पर क्‍या बदलेगा
संशोधित विधेयक में नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट में बदलाव किया गया है। इसके तहत उपराज्‍यपाल को दिल्‍ली के अधिकारियों के ट्रांसफर, पोस्टिंग का अधिकार दिया गया है। केंद्र सरकार दिल्ली के मामले में तय करेगी कि अधिकारी का कार्यकाल कितना होगा। यही नहीं, उनका वेतन, ग्रेच्युटी, प्राविडेंट फंड भी केंद्र सरकार ही तय करेगी। अधिकारियों के अधिकार, ड्यूटी और पोस्टिंग भी केंद्र सरकार तय करेगी। किसी पद के लिए योग्यता, पेनाल्टी और निलंबन की शक्तियां भी केंद्र के पास ही होंगी।

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