Jolly LLB 3 Review: जॉली एलएलबी 3 – अक्षय कुमार और अरशद वारसी की कोर्टरूम ड्रामा
Jolly LLB 3 Review: जॉली एलएलबी 3 – अक्षय कुमार और अरशद वारसी की कोर्टरूम ड्रामा
ऐक्टर:अक्षय कुमार,अरशद वारसी,हुआं कुरैशी,अमृता राव,सौरव शुक्ला,सीमा बिस्वास,गजराज राव
डायरेक्टर :सुभाष कपूर
‘जॉली एलएलबी 3’ मूवी रिव्यू
रेटिंग- 3.5*
UNN@वर्षा पारिख : निर्देशक सुभाष कपूर ने एक बार फिर साबित किया है कि वे सामाजिक मुद्दों को हास्य और संवेदना के साथ परदे पर उतारने में माहिर हैं। फिल्म की शुरुआती 15–20 मिनट की धीमी रफ्तार दर्शकों की धैर्य परीक्षा लेती है, मगर जैसे ही दूसरा भाग शुरू होता है, कहानी पकड़ बना लेती है। इस बार प्लॉट के केंद्र में है किसानों की जमीन हड़पने और आत्महत्या जैसा गंभीर मसला। कई दृश्य गहन और मार्मिक हो जाते हैं, लेकिन निर्देशक कॉमेडी के छोटे-छोटे तड़के लगाकर माहौल हल्का कर देते हैं। हालांकि कोर्टरूम ड्रामा में कुछ दृश्य बेहद सिनेमैटिक और ओवर-द-टॉप लगते हैं — जैसे मजिस्ट्रेट का अस्पताल के बिस्तर पर गवाही देना या ऊंटों की रेसिंग कारों के बीच दौड़। मगर इन सब पर फिल्म की शुरुआत में दिए गए डिस्क्लेमर से राहत मिलती है। पहली दो फिल्मों की तरह इस बार निर्देशक ने न्याय व्यवस्था की खामियों पर व्यंग्य करने की बजाय किसानों के अधिकार और उनकी जमीनी जद्दोजहद पर रोशनी डाली है। फिल्म का मुख्य संदेश बेहद सीधा और ताकतवर है .मेरी जमीन, मेरी मर्जी। यह संदेश साफ करता है कि विकास के नाम पर किसानों से उनकी जमीन छीनना अन्याय है।
कहानी
इस तीसरे पार्ट में कहानी पिछली दो किस्तों की परंपरा को आगे बढ़ाती है। अब जगदीश्वर मिश्रा उर्फ जॉली (अक्षय कुमार) कानपुर से निकलकर दिल्ली की अदालत में अपनी प्रैक्टिस कर रहे हैं, वहीं जगदीश त्यागी उर्फ जॉली (अरशद वारसी) भी मेरठ की गलियों से आगे बढ़कर राजधानी की कोर्ट में हाथ-पैर मार रहे हैं। दोनों के बीच केस हथियाने की होड़ इस कदर बढ़ती है कि टकराव और मारपीट की नौबत तक आ जाती है। इसी बीच, राजस्थान के परसौल गांव का एक किसान और कवि अपनी पुश्तैनी जमीन जाने-माने उद्योगपति हरीभाई खेतान (गजराज राव) की महत्वाकांक्षी परियोजना में खोकर मजबूरी में आत्महत्या कर लेता है। उसकी विधवा, जानकी राजाराम सोलंकी (सीमा बिस्वास), दिल्ली की अदालत का दरवाजा खटखटाती है। यही केस दोनों जॉली के बीच आमने-सामने की कानूनी लड़ाई का मैदान बन जाता है। यह मामला पहुंचता है जस्टिस सुंदरलाल त्रिपाठी (सौरभ शुक्ला) की अदालत में, जहां से शुरू होती है किसानों और इंडस्ट्रियलिस्ट की ऐसी टक्कर, जो सिर्फ कोर्टरूम तक सीमित नहीं रहती, बल्कि किसानों की जिंदगियों पर सीधा असर डालती है।
