Bhagoria Mela 2021 – मध्य प्रदेश : आनंद एवं उल्लास का पर्व-भगोरिया

UNN: होलिका दहन से ठीक एक सप्ताह पूर्व आदिवासी अंचल में आनंद एवं उल्लास का प्रतीक बनकर भगोरिया पर्व आता है। होली की मस्ती व प्रकृति के इस दौरान बदलते स्वभाव के कारण भगोरिया और ज्यादा मादक भी बन जाता है । पलास फूलों से लद जाते हैं व महुआ झरने लगता है। रबी व खरीफ दोनों ही फसलों के साथ कृषि सत्र पूरा हो जाता है।
भगोरिया का कोई अधिकृत इतिहास नहीं है। बीती सदी के भगोरियों को सामने रखें तो इसमें तीन बड़े परिवर्तन हुए हैं। आरंभ में ये भगोरिया पुरूषार्थ प्रधान हुआ करते थे । शादी-ब्याह में जिस तरह शक्ति व पुरूषार्थ का प्रतीक तलवार लेकर दुल्हा-दुल्हन को ब्याहने जाता है। वे जिसे अब समाज केवल ब्याह की परंपरा भर मानता है। ये तलवारें व शस्त्र भगोरिए के अभिन्न अंग हुआ करते थे । होलिका दहन से एक सप्ताह पूर्व तब के नायक राजाओं के राज में सैनिक के रूप में तैनात आदिवासी अपनी पसंद को अधिकारपूर्वक व राजाश्रय में प्राप्त कर लेते थे । तब इसका स्वरूप लगभग स्वयंवर जैसा था । साहस, वीरता, पुरूषार्थ तब भगोरिये की मुख्य पहचान हुआ करते थे। अंग्रेजी साम्राज्य के साए में पनपी देशी रियासतों के दौर में भगोरिये में एक और बड़ा परिवर्तन हुआ । यह पर्व पुरूषार्थ से प्रणय पर्व में बदला। एक तरुण चाहत का स्थान दोनों की सहमति ने लिया । केवल लड़के की पसंद के स्थान पर लड़का-लड़की दोनों की सहमति भगोरिए की पहचान बनी।
वर्तमान के आदिवासी युवा वर्ग में तेजी से शिक्षा व समझ का संचार हुआ है। उसके स्वप्नों ने भगोरिए से इत्तर भी सोचना शुरू किया है । वह नहीं चाहता की उसकी जीवन संगिनी बाजार में बिकने या दिखने वाली खूबसूरती भर हो। अब वह अपनी जीवनसाथी भगोरिए मेलों में नहीं तलाशता । अब वह भगोरिए का उपयोग अपने मन को आनंदित करने के लिये करता है। वह खूब संजता संवरता है। कहीं भी हो वहां से अपने भगोरिए में लौटता है। खूब ढोल बजाता है। बाँसूरी मादल बजाता है। नाचता गाता है। अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा भगोरिए पर व्यय करता है वह भगोरिये का मुस्तैदी से इंतजार करता है परंतु उसे अपने प्रणय या जीवन का स्थाई हिस्सा नहीं बनाता है। दरअसल बदल चुके संदर्भों में भगोरिया एक बाजार बन चुका है। भगोरिया अब हाट नहीं रहा वह भगोरिया मेला बन चुका है। पर्व से हाट व हाट से मेले तक के सफर में भगोरिए का मूल रंग जिसे आनंद ही कहा जा सकता है, अब तक अक्षुण्य है। यह वह आनंद है जो प्रकृति की गोद में अपने शाश्वत रूप में खिलखिलाता है । एक पुरूष व एक स्त्री के बीच कोमलता का जो शाश्वत रिश्ता है उसका बिना लाग लपेट प्रतिनिधित्व करता है। यही वजह है कि विकसित दुनिया के लिये भी भगोरिया आकर्षण का केन्द्र है। क्योंकि भगोरिए में अब भी इतनी उर्जा है कि वह किसी को भी सहजता से मन के अंदर तक की आनंदमयी यात्रा करवा देता है।
कहा तो यह भी जाता कि भगोरिया भव अर्थात भगवान शंकर व गौरी अर्थात पार्वती के अनूठे विवाह की याद में उस विवाह की तर्ज पर भवगौरी अर्थात भगोरिया नाम से अब तक मनाया जाता है। भगवान शंकर का पुरूषार्थ व प्रणय ही इसी कारण से इसके मुख्य अवयव भी रहे हैं। बहरहाल आदिम संस्कृति की उम्र वे तेवर से जुड़े होने के कारण भगोरिया आदिवासी वर्ग की महत्वपूर्ण धरोहर है । इसे उतनी ही पवित्रता से देखा व स्वीकार किया जाना चाहिए। जिस पवित्रता के साथ किसी भी संस्कृति का वर्तमान अपने अतीत को स्वीकार करता है। इसी में भगोरिए के हर स्वरूप की सार्थकता भी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Releated

TYLE UP FOR BLENDERS PRIDE FASHION NXT FESTIVAL

  TYLE UP FOR BLENDERS PRIDE FASHION NXT FESTIVAL Get ready to experience the NXT in fashion, style and music as Blenders Pride Fashion NXT brings together India’s first fashion festival. Mumbai : Blenders Pride Glassware has always been at the cusp of presenting the next in fashion, presenting experiences that have shaped the style […]

रात को बिस्तर पर जाने से पहले एक गिलास गर्म पानी पीने से सेहत को मिलेंगे कई फायदे

  UNN@ गर्म पानी हमारी सेहत के लिए कितना फायदेमंद है ये तो आप सभी जानते हैं। हेल्थ एक्सपर्ट भी सुबह सबसे पहले गर्म पानी पीने की सलाह देते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं रात में सोने से पहले गर्म पानी पीने से सेहत को कई लाभ होते हैं। सोने से पहले पहले गर्म […]