Rahul Gandhi – राहुल गांधी के निशाने पर भाजपा या हिन्दू..!

 

राहुल गांधी के निशाने पर भाजपा या हिन्दू..!
– सदन में हिंसक तो सड़क पर अयोध्या की हार के दे रहे उदाहरण

@ शैलेन्द्र सिंह । लोकसभा की 99 सीटें जीतकर राहुल गांधी इन दिनों सदन से लेकर सड़क पर हिन्दू समाज को कोसने का काम कर रहे है, जबकि अब वे नेता प्रतिपक्ष के जिम्मेदार पद पर है। सदन में वे हिन्दू समाज को हिंसक बोलते है, तो सड़क पर बोल रहे है कि जैसे अयोध्या (फैजाबाद लोकसभा) में भाजपा को हराया वैसे ही गुजरात में भी हराएंगे। गुजरात में हराएंगे ये तो ठीक है, पर हार में बार-बार अयोध्या का उदाहरण देना सीधे तौर पर हिन्दू समाज का अपमान है।
अयोध्या सनातनियों की आस्था का महत्वपूर्ण स्थान है, 500 साल बाद भव्य मंदिर में प्रभु श्रीराम विराजित हुए है, मथुरा, काशी और अयोध्या से सनातनियों का भावनात्मक जुड़ाव है। अयोध्या में भाजपा की हार को राहुल गांधी एक तरह से हिन्दू समाज की हार के तौर पर प्रचारित कर रहे है। वे अपने भाषणों में हिंसक हिन्दू या अयोध्या की हार से भाजपा और संघ परिवार के हिंदुत्व को जोड़ रहे है। ये सही है कि भाजपा या संघ परिवार से जुड़ाव होना ही हिन्दू होने की पहचान नहीं है, पर ये भी नहीं भूलना चाहिए कि अयोध्या, मथुरा और काशी का पक्ष भी दमदारी से भाजपा और संघ परिवार ही रखते है, कांग्रेस सहित कई तमाम दल वोट बैंक के लिए तुष्टिकरण का कोई मौका नहीं छोड़ते है, जबकि भाजपा और संघ परिवार सदन से लेकर सड़क पर हिन्दू समाज के संरक्षण से कोई समझौता नहीं करता है। राहुल गांधी को ये भी नहीं भूलना चाहिए कि अधिकतम हिंदी भाषी राज्यों में आज भाजपा या सहयोगी दलों के साथ सरकार में है, बीते लोकसभा चुनाव में भी सर्वाधिक करीब 24 करोड़ वोट अकेले भाजपा को मिले है, जबकि संघ परिवार देश का एकमात्र ऐसा सांस्कृतिक व सामाजिक संगठन है, जिसका लगभग 10 करोड़ हिन्दुओं से सीधा संपर्क है। किसी एक या दो चुनाव से नहीं, भाजपा का परफार्मेंस पिछले कई चुनावों से हिंदी भाषी राज्यों व हिन्दू समाज में कांग्रेस सहित अन्य दल की तुलना में बेहतर है। ठीक इसी तरह संघ परिवार भी सालों से बिना किसी भेदभाव के हिन्दू समाज के बीच काम कर रहा है, काम ही नहीं कर रहा है लगातार विस्तार भी कर रहा है, कांग्रेस सहित तमाम दल जहां आदिवासी, दलित, ओबीसी की राजनीति करते है, वही संघ परिवार सिर्फ हिन्दू समाज की बात करता है।
राहुल गांधी ये कहकर बच नहीं सकते है कि हिंसक हिन्दू या अयोध्या की हार से उनका मतलब भाजपा या संघ परिवार के हिंदुत्व से है। भाजपा और संघ परिवार आज बहुत बड़े हिन्दू समाज का प्रतिनिधित्व करते है, इसलिए इनके बहाने हिन्दूओं को कोसना, हिंसक बताना या अयोध्या की हार को बार-बार दोहराना भी सीधे तौर पर हिन्दू समाज का ही अपमान है। राहुल गांधी व कांग्रेस की भविष्य में राजनीतिक दिशा यही रही तो हिन्दू समाज इसे किसी भी स्थिति में स्वीकार भी नहीं करेगा। 99 सीटें जीतकर राहुल गांधी इठला रहे है, पर वे पिछले कुछ चुनावों के परिणामों पर नजरें दौड़ाएंगे तो पता चलेगा कि केंद्र या राज्यों में कांग्रेस की सफलता अस्थाई है, जबकि कुछ अपवादों को छोड़ भाजपा की सफलता में स्थाईत्व दिखता है। सदन में अयोध्या से समाजवादी पार्टी के सांसद अवधेश प्रसाद को पहली पंक्ति में दूसरे नंबर पर बैठाना भी राहुल गांधी और अखिलेश यादव की रणनीति का ही हिस्सा है, इससे भाजपा को चिढ़ाना, हिन्दू समाज को अपमानित करना और मुस्लिम व दलित वोटों को खुश करना है।
हार के कारण खोजे कांग्रेस –
अब बात कांग्रेस के उत्साह की। 52 से 99 की संख्या तक पहुंचने पर राहुल गांधी और कांग्रेस का उत्साहित होना जायज है, क्योंकि जो वातावरण था उसमें कांग्रेस के कई जानकारों को भी उम्मीद नहीं थी कि आंकड़ा 100 के पास पहुंच जाएगा। वैसे उत्साहित होना अच्छी बात है, पर उत्साह में दूसरे को कमतर आंकना बड़ी भूल है, और यही भूल लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से कांग्रेस कर रही है, कांग्रेस 99 के आंकड़े पर ऐसी इठला रही है मानो उसे सत्ता मिल गई हो, जबकि अकेले भाजपा के 240 के आंकड़े को पूरा इंडी गठबंधन छू नहीं सका है। दो दर्जन से अधिक राज्यों में कांग्रेस का खाता नहीं खुल सका है, जबकि यूपी सहित कई राज्यों में बैसाखी (सहयोगी दल) के सहारे सीटें मिल सकी है, लगातार तीन चुनावों में सरकार से दूर रहने के बावजूद कांग्रेस 99 का जश्न मना रही है, जबकि कांग्रेस को हार के कारण खोजने चाहिए। कांग्रेस नेताओं की शायद मती भ्रम हो गई है, जो इसमें ही खुश है कि भाजपा को अकेले 272 का आंकड़ा नहीं छुने दिया, कांग्रेस के नेता भूल रहे है कि 240 के आंकड़े के साथ भाजपा अभी भी सबसे बड़ा दल है, एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रही है, और रोकने की लाख कोशिश के बावजूद नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने में सफल रहे है। कांग्रेस को भाजपा से सबक लेना चाहिए जो सरकार में होने और सबसे बड़ा दल होने के बावजूद अपने प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं है, राष्ट्रीय स्तर से लेकर राज्यों, जिले व मंडल इकाईयों तक परिणामों की समीक्षा की जा रही है।

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