अरणी -‘अग्निमंथा’ : औषधीय गुणों से भरपूर पौधा, समस्याओं को अग्नि की तरह करता है भस्म

अरणी -‘अग्निमंथा’ : औषधीय गुणों से भरपूर पौधा, समस्याओं को अग्नि की तरह करता है भस्म

नई दिल्ली । अरणी एक औषधीय पौधा है, जिसे ‘अग्निमंथा’ के नाम से भी जाना जाता है। अग्निमंथा क्यों पड़ा, इसको लेकर भी बड़ी दिलचस्प कहानी है। अग्निमंथा का भेद करें तो ‘अग्नि’ और ‘मंथा’ होता है। ‘अग्नि’ मतलब ‘आग’ और ‘मंथा’ या ‘मथना’। कहा जाता है कि जब प्राचीन समय में दिया-सलाई नहीं थी, तो अग्निमंथा को आपस में रगड़ कर आग पैदा की जाती थी। यथा नाम तथा गुण वाली कहावत को भी ये चरितार्थ करता है, मतलब शारीरिक व्याधियों को भी भस्म करने की क्षमता है। सुश्रुत और चरक संहिता में इसका जिक्र भी है।
यह उत्तर भारत के शुष्क मैदानों में झाड़ियों के रूप में उगता है। इसकी लंबाई 1.5 से 3 मीटर होती है। यह दो प्रकार का होता है- छोटी अरणी और बड़ी अरणी। आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा में इसका खास स्थान है। इसका वैज्ञानिक नाम क्लेरोडेंड्रम फ्लोमिडिस है और यह कड़वा, गर्म और पाचन को बढ़ाने वाला होता है। अरणी के पत्ते हरे और गोल होते हैं। छोटी अरणी के पत्तों से सुगंध आती है, जबकि बड़ी अरणी के पत्ते नोकदार होते हैं। इसके फूल सफेद और फल छोटे-छोटे करौंदे जैसे होते हैं। लोग इसकी सब्जी और चटनी बनाते हैं। खासकर श्वास रोगियों के लिए यह फायदेमंद है। इसकी जड़, तना, पत्ती, फूल और फल सभी औषधीय गुणों से भरपूर हैं।
प्राचीन भारत में इसके उपयोग के उदाहरण आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा पद्धति में दिए गए हैं। जड़ दशमूल या दशमुलारिस्ता (दश – दस, मूल – जड़) नामक आयुर्वेदिक सूत्रीकरण के दस प्रमुख अवयवों में से एक है। इसकी छाल और तने का प्रयोग च्यवनप्राश में भी किया जाता है। इसके सूजनरोधी (सूजन, कोमलता, बुखार और दर्द जैसे सूजन के कुछ लक्षणों को कम करने के लिए कार्य करना) और एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) गुण का भी उल्लेख चरक संहिता में मिलता है। यह पौधा कई बीमारियों में लाभकारी है। बड़ी अरणी जुकाम, कफ, सूजन, बवासीर, गठिया, पीलिया और अपच जैसी समस्याओं में असरदार है। छोटी अरणी भी सूजन, खासकर वात से होने वाली सूजन को कम करती है। जोड़ों के दर्द में इसके पत्तों का काढ़ा पीने से राहत मिलती है। 100 मिली काढ़ा सुबह-शाम लेने से गठिया ठीक होता है। कब्ज में इसके पत्ते और हरड़ की छाल का काढ़ा फायदा करता है। खून साफ करने के लिए जड़ का काढ़ा या पत्तों का रस शहद के साथ लिया जाता है।

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